सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/१२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६
श्री हर्ष


की हुई। इतने में एक दिन प्रभात में हर्ष ने स्वप्न में एक सिंह को आग में जलते देखा तथा उसके पीछे सिंहनी को भी कूदते पाया। यह देखकर प्रेम पाश सम्बन्धि उसके मन में नाना प्रकार के विचार आने लगे तथा वह कुछ उदास हो गया। इसी समय उसने एक हिरण को आते देखा। उसके गले में एक जामुनी रङ्ग का कुछ बन्धा हुवा था। इस अपशकुन को देख वह चिन्तित हुवा। उस हिरण ने अपने गले में बंधी हुई चिठ्ठी उसे दी। उस पढ़ कर उसने हिरण से पूछा कि " मेरा पिता किस रोग से पीड़ित है"। हिरण ने उत्तर दिया कि उसे बहुत ज्वर आ रहा है यह सुन हर्ष बिना खाये पीए अकेला ही घोड़े पर सवार हो अपन घर को चल दिया। दूसरे दिन दोहपर को जब प्रभाकर वर्धन से भेट हुई तब उसकी अवस्था अधिक शोचनीय देख पुनर्वसु के कुल के रसायन नामी वैद्य को बुलाया और पिताजी कब अच्छे होंगे' ऐसा पूछा। रसायन दूसरे दिन बतलाने की प्रतिज्ञा कर चला गया। अगले दिन हर्ष को रसायन के अग्नि प्रवेश का समाचार मिला। 'मेरे कुटुम्ब के लिये रसायन के शुद्ध प्रेम का यह परिणाम है' ऐसा सोच कर