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श्री हर्ष


कन्नौज तथा थानेश्वर के राजा बौद्ध धर्मावलम्बी थे और पूर्व काल में तो धर्म भी राजाओं में वैमनस्य का कारण था। इसी हेतु शशाङ्कगुप्त ने सहायता देना स्वीकार किया होगा इसमें कोई अचरज नही।

संवादक का समाचार सुन राज्यवर्धन क्रोध युक्त हुआ और लढ़ाई राज्यवर्धन का वध की तैयारी करने लगा। अपने साथ उसने १०००० घोड़े स्वार लिये तथा अपने मामा का पुत्र भण्डी को सेनापति बनाया। हर्ष ने साथ जाने का आग्रह किया किन्तु राज्यवर्धन ने उसे समझा कर थानेश्वर में ही रहने को कहा। राज्यवर्धन ने देवगुप्त को हरा दिया तथा बहुत करके वह युद्ध में मारा गया। वहां से शत्रुओं क पंजे में से कन्नौज को छुड़ाने के लिय वह चल पड़ा। मार्ग में उसकी शशाङ्कगुप्त से भेंट हो गई। शशाङ्कगुप्त ने राज्यवर्धन की भारी सेना देव तथा अपनी निर्बलता पर विचार कर कपट करने का निश्चय किया, इस समय परस्पर झगड़ा मिटाने की जो युक्तियां अन्य क्षत्रिय राजा काम में लाते थे वहीं इसने भी की। शशाङ्कगुप्त ने अपने आप को राज्यवर्धन के आगे झुका