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श्री हर्ष


देवी था। उसके गर्भ से उत्पन्न भास्करद्युति अथवा भास्कर वर्मा नामक युवराज ने यह आभोग छत्री हर्ष को भेंट निमित्त भेजी थी तथा उससे मित्रता की याचना की थी। हर्ष ने यह भेंट प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार कर मित्रता का वचन दे हंसवेग को रवाना किया।

राज्यश्री की खोजहर्ष जब कन्नौज की ओर कूच करने की तय्यारी में था उस समय भण्डी आ पंहुचा। उसके साथ मालवा के गुप्त राजा के सब हाथी, बन्दी मनुष्य तथा कीमती खजाना था। दोनो भाइयों ने अपने मृत भाई के लिये बहुत शोक किया तथा भण्डी ने राज्यवर्धन के वध का आदि से अन्त तक का सब वृतान्त कह सुनाया। तत्पश्चात् हर्ष ने भण्डीसे राज्यश्री के समाचार पूछे, भण्डी ने उत्तर दिया कि लोगों में तो ऐसा सुना जाता है, कि जब राज्यवर्धन मर गया और गुप्त राजा ने कन्नौज पर कब्जा किया तब राज्य श्री ने अपनी सहेलियों सहित कैदखाने से भाग कर विन्ध्यापर्वतश्रेणि के जङ्गलों में आश्रय लिया है। उसकी खोज में गये हुए अनेक पुरुषो में से अभी तक कोई नहीं लौटा। यह