पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/१३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७
श्री हर्ष


सुन हर्ष कहने लगा "कि ऐसे खोज करने वाले हमारे किस काम के हैं। राज्यश्री जहां गई होगी वहां मैं सब काम छोड़ कर जाऊंगा और तुम सेना लेकर शशाङ्कगुप्त से लड़ने जाओ" तदनन्तर मालवा के गुप्त राजा से प्राप्त खजाने का प्रबन्ध कर वह विन्ध्यापर्वत की ओर चल दिया और थोड़े दिन में ही वहां पहुंच गया।

दिवाकरमित्र से भेंटइस प्रकार वह बहुत दिन तक जङ्गल में भटकता रहा परन्तु राज्यश्री का कुच्छ भी पता नहीं लग सका। एक दिन शरभकेतु नामक सरदार का पुत्र व्याघ्रकेतु एक जङ्गली पुरुष को अपने साथ ले हर्ष के पास आया। महाराज को प्रणाम कर कहने लगा कि भगवन् शबरों का सर्दार भूकम्प इस विन्ध्यापर्वत के जङ्गलों का स्वामी और सब जङ्गली लोगों का नायक है। यह निर्घात उसका भांजा है तथा यहां के सब स्थलों से परिचित है। आप इसको जो आज्ञा देगें वह उसे शीघ्र ही पालन करेगा। इस पर से हर्ष बोला कि यह सब प्रदेश तुम्हारा परिचित है तथा तुम घूमना भी