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पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/१४९

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श्री हर्ष

दिग्विजय का विस्तारइस प्रकार हर्षकी दिग्विजयका वर्णन यत्र तत्र मिलता है परन्तु श्रृंखला बध्द विस्तृत वर्णन कहीं भी देखने में नहीं आता।

ह्युयेनत्सङ्ग लिखता है कि "पूर्व से पश्चिम तक जो राजा लोग आधीन नहीं हुये थे उन पर इसने आधिपत्य जमाया, और बहुत काल तक उसके हाथी और पैदल सैनिक अपने युद्ध वस्त्रोंसे सुशोभित रहे। हर्ष ने समस्त राजाओं पर विजय लाभ की इसका वर्णन आगे किया जायगा इस स्थल पर बाण कवि के हर्ष चरित के निम्न वाक्य विचारणीय हैं।

अत्र बलजिता निश्चलीकृता ज्लवन्तः कृत्तपक्षाः क्षितिभृतः। अत्र प्रजापतिनाशेषभोगिमण्डलस्योपरि क्षमाकृता। अत्र पुरुषोत्तमेन सिन्धुराजं प्रमथ्य लक्ष्मीरात्मीयाकृता अत्र बलिना मोचितभूभृद्वेष्टनो मुक्तो महानागः। अत्र देवेनाभिषिक्तः कुमारः।

अत्र परमेश्वरेण तुषारशैलभुवो दुगाया गृहीतः करः।
अत्र लोकनाथेन दिशा मुखेषु परिकल्पिता लोकपालाः ॥