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पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/१४८

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श्री हर्ष


करते थे और नर्मदा नदी उनके राज्यों की सीमा थी। एक शिलालेख में पुलकेशी द्वितीय का वर्णन "समर संसक्त सकलोत्तरापथेश्वर श्रीहर्षवर्धन पराजयापलब्ध परमेश्वरापर नामधेयः सत्याश्रयः श्रीपृथ्वीवल्लभो महाराजाधिराजः" ऐसा आया है। इस परसे कहा जा सकता है कि हर्ष 'सकलोत्तरापथेश्वर' अर्थात्अ खिल उत्तरीय भारत का राजा था।

इ. स. ६३३ में हर्ष ने सौराष्ट्र के वल्लभी वंशके गुजरात की जीने राजा दूसर ध्रुवसेन (ध्रुवभट्ट) को हराया, वह भरुचके राजाकेगुजरात की जीतें यहां भाग गया, अन्तमें उसने हर्षसे सन्धि करली तथा उसको अपनी पुत्री विवाह में देने का वचन दिया। उसने कर देना भी स्वीकार किया। इसी चढ़ाई में हर्ष ने सौराष्ट्र में स्थित आनन्दपुर ग्राम और सोरठ प्रान्त तथा सौराष्ट्र के उत्तर कच्छ प्रदेशको भी अपने आधीन किया होगा। भरुचके राजा दादा के दान पत्र से ऐसा पता लगता है कि इ. स. ६४१ में पश्चिम का यह सब प्रदेश मालवा के आधीन था।