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श्री हर्ष


कुछ कर दे तथा उत्सव इत्यादि अवसरों पर दरबार में उपस्थित हो, इतना ही पर्याप्त था। हर्ष ने भी इसी नियम का अनुसरण किया होगा, ऐसा प्रकट होता है। बाणने उपरोक्त वाक्यों में कई देशों के नाम भी दिये हैं, हिमालय के आगे का प्रदेश कदाचित् नेपाल हो। हर्षने जिस कुमार को राजा बचाया था वह प्रागज्योतिष (आसाम) का भास्करवर्मा उपनामधारी कुमार राजा ही होगा। यह कुमार राजा हर्ष का मित्र बना था यह पूर्व लिखा जा चुका है। बाण का कहना है कि हर्षने कुमार राजा को हाथी की सूंढ से छुड़ाया था। यह कथा इस प्रकार है कि जिस हाथी पर हर्ष सवारी कर रहा था, उस हाथीने कुमारराज को अपनी सूण्ड में पकड़ लिया। हर्ष का बल और साहस बड़ा चढ़ा था, इस लिये उसने तलवार से उसकी सूण्ड काट डाली और कुमार राजा को मुक्त कर हाथी को जालमें हांक दिया। इ. स. ६०८ में गद्दी पर बैठने के अनन्तर छै वर्ष में ही अर्थात् इ. स. ६१४ तक हर्ष ने अपनी दिग्विजय समाप्त की। इसके पश्चात् यत्र तत्र जो उसने विजय लाभ की बह इस से भिन्न हैं।