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श्री हर्ष


तथा बौद्ध धर्म सम्बन्धि अनेक संस्थाए स्थापित की थीं। उस के द्वारा असंख्य मठ तथा गङ्गा तट पर सौ पाद ऊचे अनेक स्तूप बनवाये गये थे। उस समय बौद्ध धर्म का ह्रास हो रहा था, फिर भी उस के बनवाये हुये मठों में बौद्ध पन्थ के दो लाख साधु रहते थे[१], साधारणतयः लोगों की बौद्ध धर्म में अधिक श्रद्धा थी। वैशाली तथा पूर्व बङ्गाल में जैन धर्म का। बहुत प्रचार था परन्तु बौद्ध धर्म तथा पौराणिक धर्म (हिन्दु धर्म ) से उस के अनुयायीओं की संख्या कम थी लोग अपना अपना धर्म शान्ति पूर्वक पालते थे। लोगों में धार्मिक झगड़े वैसे कम नहीं थे। राज्यवर्धन के घातक शशाङ्कगुप्त ने इ. स. ६०० में बुद्ध गया का बोधि वृक्ष गिरवा कर जलवा दिया तथा बुद्ध के पादचिन्ह का पत्थर भी तुड़वा दिया था। उसने अनेक मठ नष्ट कर साधुओं को विखेर दिया था। मगध के राजा पूर्णवर्मा ने बोधि वृक्ष को पुनः स्थापन किया।


  1. देखो 'जर्नल ऑफ रॉयल एशियाटिक सोसाईटी.(१८९१) पृष्ट ४१८ से ४११०