पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/१५८

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इस प्रकार कभी कभी लोग धर्मान्ध हो जाते थे परन्तु प्रायः लोगों में सहनशीलता ही थी ऐसा कहना चाहिये।

पूर्वकाल के हिन्दुओं में एक ही कुटुम्ब के लोग अपनी अपनी इच्छानुसार, शैव वैष्णव वा बुद्ध पन्थ पाल सकतेहर्ष और ह्युयेनत्सङ्ग थे, और और बौद्ध धर्म को हिन्दु धर्म से भिन्न नहीं माना जाता था किन्तु व्यवहार दृष्टि में यह आर्य धर्म की दो महाशाखाएं समझी जाती थीं। हर्ष के कुटुम्ब में ही एक प्रकार की पूजा नहीं होती थी। पुष्पभूति शिवजी का भक्त था, प्रभाकरवर्धन सूर्य भक्त था, राज्यवर्धन और राज्यश्री बुद्ध के अनुयायी थे। स्वयं हर्ष शिव, सूर्य और बुद्ध तीनों का भक्त था। उसने इन तीनों के मन्दिर बनवाये थे। आरम्भ में हर्ष सम्मिलीयपन्थ के हीनयान मार्ग में था परन्तु बाद में जब वह बङ्गाल में चीनी न्यायेश्वर हुयेनत्सङ्ग को मिला, तो उस के प्रभाव से महायान मत का अनुयायी हो गया। उस समय स्त्रियों को परदे में नहीं रखा जाता था, इस लिये वह और राज्य-