पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/१६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५७
श्री हर्ष

इसके बाद वल्लभी का राज्य आता है। वहां का राजा ध्रुवभट्ट क्षत्रिय था तथा हर्ष का दामाद था। वह रणसंग्राम में भी हर्ष के साथ जाया करता था, और इ. स. ६४३ की प्रयाग वाली सभा में वह उपस्थित था। हूण लोगों के त्रास से अयोध्या से भागा हुआ सेनापति भट्टारक ने लगभग इ. स. ४८५ में वल्लभी वंश स्थापित किया था। ताम्रपत्रों इत्यादि से ऐसा प्रतित होता है कि इस वंश के राजा शैव थेकेवल ध्रुवभट्ट ही बौद्ध था।

इसके अनन्तर राजपुताना का गुर्जर राज्य आता है इसका मुख्य नगर भिनभाल था, वहां का राजा बौद्ध धर्मावलम्बी क्षत्रिय था, वह व्याघ्रमुख राजा का लड़का होगा। व्याघ्रमुख के राजकाल अर्थात् इ. स. ६२८ में प्रसिद्ध खगोलवेत्ता ब्रह्मगुप्त ने खगोल विद्या का पुस्तक रचा था। ह्युयेनस्सङ्ग के समय व्याघ्रमुख का यह पुत्र युवा होगा। हर्ष के पिता ने इस देश को जीता था, यह हम पूर्व कह चुके हैं, परंतु हर्ष की दिग्विजय में इस देश का नाम नहीं आता, फिर