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श्री हर्ष
भी ह्युयेनत्सङ्ग लिखता है कि वह हर्ष की सत्ता को स्वीकार करता था।
इसके बाद वल्लभी की दक्षिण में स्थित गुजरात का भृगुगच्छ वा भरुकच्छ (आज कल का भड़ोच) आता है। उपर लिखे गुर्जर वंश के किसी राजा ने यह देश बसाया होगा, और फिर इसका नाम गुजरात पड़ गया होगा । इस समय इस देशकी राजधानी नरुच (भडोच) थी और दादा द्वितीय राज्य करता था। ताम्रपत्रों द्वारा उसकी वंशावलि मालूम हो सकी है आर " विपुलगुजरनृपन्वय प्रदीपतो"[१] इत्यादि वचन से उसका गुर्जर वंशी होना सिद्ध हो जाता है।इस वंशके राजा सूर्यदेव को पूजते थे, तथा भिनभाल में सूर्य्य का मन्दिर था इस लिये उपरोक्त वंश से इसका सम्बन्ध और भी दृढ़ होता है। इस वंश का पहिला राजा दादा प्रथम था वह लगभग इ. स. ५२८ में यहां आया था और उसने यह राज्य स्थापित किया। उसके बाद जयभट्ट और बाद दादा द्वितीय राजा हुआ। वह
- ↑ इन्डियन एन्टिक्केरी पुस्तक ७ अंक ६३