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पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/१७

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का और अपने देश का बहुत कुछ वृत्तान्त दिया है। काव्य का अन्तिम सर्ग का सर्ग इस प्रकार के वर्णन से परिपूर्ण है। अतः विकमाङ्कदेव और उसके पूर्वजों के विषय में कुछ कहने के पहले हम बिल्हण का थोड़ा सा वृत्तान्त देना चाहते हैं।

बिल्हण की आत्म-कथा।

कवि ने इस काव्य के अन्तिम सर्ग में पहले काश्मीर की प्राचीन राजधानी का, फिर उसके दो एक राजाओं का, फिर अपने पूर्वजों का, और तदनन्तर अपना चरित संक्षेप से लिखा है। यहाँ पर, हम, पहले बिल्हण की कही हुई कथा का सारांश देकर, फिर उसके कथन का यथामति विचार करेंगे। कवि कहता है-

काश्मीर के नगरों में प्रवरपुर नामक मुख्य नगर है। वह वितस्ता (झेलम) और सिन्धु के सङ्गम पर बसा है। वह संसार के अन्यान्य नगरों से ही बढ़ कर नहीं ; कुवेर की नगरी, लङ्का और अमरावती भी उसके सामने कोई वस्तु नहीं। वह अत्यन्त पवित्र पुरी है; वहाँ के ब्राह्मण महाविद्वान् हैं; वहाँ उष्णता कभी किसी को नहीं