पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/१८

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सताती। वहाँ की स्त्रियाँ परम सुन्दरी हैं, विदुषी भी हैं वे संस्कृत और प्राकृत दोनों बिना प्रयास बोल सकती हैं। वहाँ भट्टारक-मठ, संग्रामक-क्षेत्र-मठ और क्षेमगौरीश्वर का मन्दिर इत्यादि स्थल दर्शनीय हैं। वहाँ केसर और अंगूर बहुत उत्पन्न होते हैं; ब्राह्मणों के यहाँ सदा अग्निहोत्र हुआ करता है, नाटकालयों में स्त्रियों को अभिनय करते देख रम्भा, चित्रलेखा और उर्वशी आदि अप्सराये लज्जित होकर सिर नीचा कर लेती हैं।

उस प्रवरपुर में अनन्तदेव नामक राजा होगया है। वह बड़ा सत्यवक्ता, बड़ा उदार और बड़ा वीर था। उसने शकों को परास्त किया; गङ्गा के किनारे तक चढ़ाई की; और मानस सरोवर तक के दर्शन किये। चम्बा और त्रिगर्त इत्यादि प्रसिद्ध नगरों को उसने अपने अधीन किया। उसकी रानी का नाम सुभटा था। वह बड़ी दयावती, बुद्धिशीला और उदार थी। कुटिल लेखों के लिखने वाले न तो कायस्थ ही उसके पास से फूटी कौड़ी पा सके और झूटी सच्ची बातोँ के बनानेवाले न ख़ुशामदी विटोंही ने उससे एक पैसा पाया। उसने अपना सारा धन ब्राह्मणे को,