था। वह बौद्ध धर्मी था और उसके राजमहल के पास
एक बौद्ध मंदिर था। "वह मक्खी को भी नहीं
सताता, तथा उसके घोड़े और हाथियों को पानी
छान कर दिया जाता, जिससे जीव हत्या न हो।
जीवों की हिंसा नहीं करनी चाहिए यह बात उसने
अपनी प्रजा को भली प्रकार समझा दी थी। इस
प्रकार काम करता हुआ वह पचास वर्ष पूर्व राजगद्दी
पर रहा" इ० स० ५३० में वह गद्दी पर बैठा
था। राजतरिङ्गिणि में विक्रमादित्य का पुत्र मालवा
का राजा-शिलादित्य था ऐसा उल्लेख है। उसके
शत्रुओं ने उसे उसकी राजधानी से मार भगाया था,
परंतु काश्मीर के प्रवरसेन द्वितीय ने उसका राज्य उसे
वापिस दिला दिया। इस प्रवरसन ने इ० स० ५४०
में नए काश्मीर को अपनी राजधानी बनाई। मालवा
के विक्रमादित्य यशोधर्म राजा ने इस प्रवरसेन से
पूर्व मत्रिगुप्त नामक राजा को राज्य करने के निमित्त
भेजा था। विक्रमादित्य के पुत्र प्रतापशील उपनामधारी
शिलादित्य से उसके शत्रुओं ने उसका प्रदेश छीन
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श्री हर्ष