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श्री हर्ष


लिया था और प्रवरसेन ने उसे वापिस दिलवाया था। ऐसा अनुमान हो सकता है कि यही प्रतापशील उर्फ शिलादित्य मालवा का -- अर्थात ह्युयेनत्सङ्ग के मोलपों का राजा हो।

परन्तु यह कुछ सन्दिग्ध रह जाता है। ह्युयेन- सङ्ग लिखता है कि हर्ष का दामाद -- वल्लभी का राजा- ध्रुवनट्ट मालवा शिलादित्य का भाञ्जा था परन्तु यहां उसने रिश्तेदारी के सम्बन्ध में गरबड़ की है, वास्तव में मालवा के शिलादित्य और ध्रुवभट्ट के पिता सगी बहिनो के लड़के अर्थात-मौसरे भाई-होगें। यदि इस प्रकार समझा जाय तो मालवा का शिलादित्य ही ह्युयेनत्सोंङ्ग के मोलपाका शिलादित्य होगा, यह निश्चयात्मकरूप से कहा जा सकता है। ऐसी धारणा हो सकती है कि जब ह्युयेनत्सङ्ग वहां गया हो तब शिलादित्य का पौत्र राज करता हो। इस वंश ने इ. स. ५२८ से ८४० तक पश्चिम मालवा में राज्य किया होगा।

अब क्रमानुसार उज्जयिनि आती है। चम्बल नदी द्वारा पश्चिम मालवा से विभाजित पूर्व मालवा की