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श्री हर्ष

दूसरा हर्ष इ० स० १११३ से ११२५ तक काश्मीर में राज्य करता था। यह हर्ष भी राजा था किन्तु धनिक के भाष्य के कई स्थलों पर से ऐसा पता चलता है कि वह उन तीन नाटकों का कर्ता नहीं, इस से यह सिद्ध हुआ कि हमारा चरित्रनायक हर्ष ही इन तीन नाटकों का रचयिता था। कई लोगों की ऐसी धारणा है कि श्रीहर्ष ने इन नाटकों को नहीं रचा किन्तु उसके दरबार के किसी कवि ने धन के बदले में यह नाटक लिखकर हर्ष का नाम लेखक रूप में रख दिया होगा। मम्मट के काव्य प्रकाश में एक स्थलपर लिखा है-

"श्रीहर्षादेर्धाविकादीनामिव धनम्" इस वाक्य पर से लोगों का ऐसा अनुमान होता है। दूसरे इसे सबल नहीं मानते। उनका कथन है कि ऐसा मानना कि धावकादि लेखकों को श्रीहर्ष के राज दरबार से धन की सहायता मिलती थी अतः उन्होंने यह नाटक लिख हर्ष के नाम से प्रसिद्ध कराये अनुचित है।

राजशेखर कृत 'कविविमर्श' में निम्नलिखित लोक पाये जाते हैं।