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श्री हर्ष


इन्ही के रचित नाटक बतलाये जाते हैं। कईयों को इस पर सन्देह है। इतिहास में कुल तीन हर्ष हुये हैं। एक हर्ष बारहवीं शताब्दी में हुआ है,उसकी माताका नाम मामल्लदेवी तथा पिता का नाम हीर था। उसने 'नैषधीय चरित' नामी एक महाकाव्य की रचना की है। इसके अतिरिक्त वह अन्य आठ पुस्तकों का भी लेखक है। इसके लेखों में एक विशेषता यह है कि वह स्वरचित ग्रन्थों का नाम उनमें यत्र तत्र देही देता है, परन्तु उसके किसी भी लेख में 'रत्नावली' नागानन्द और 'प्रियदर्शिका' का नाम नहीं और अपने नैषधीय चरित में एक स्थल पर वह कहता है कि "ताम्बूलद्वय मासनं च लभते यः कान्यकुब्जेश्वरात्।"

इस पर से यह कहा जा सकता है कि वह कन्नौज के राजा के पास से कर लेता था परन्तु हमारा चरित्र नायक हर्ष अपन आपको अपने काव्यों में "पादपद्मोपजीवी राजसमूह" कर के लिखता है अर्थात् स्वयं वह राजा था, इस लिये नागानन्द क राजकवि 'राजोपजीवी' हर्ष नहीं हो सकता यह स्पष्ट ही है।