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श्री हर्ष

'मालविकाग्निमित्र' नाटक में भास का उल्लेख किया है इस पर से यह सिद्ध ही है कि भास कालिदास से पूर्व हुआ होगा। इस लिये नारायण शास्त्रीने कल्हण की राजतरिङ्गिणि में

तत्रानेहस्युज्जयिन्यां श्रीमान्हर्षापरामेधा।
एकच्छत्रश्चक्रवर्ती विकृमादित्य इत्यभूत ॥

उक्त श्लोक पर से एक नया हर्ष ढूंड निकाला है। परन्तु जब तक 'कवि विमर्श' पुस्तक अप्रकाशित है तब तक इस बातका निर्णय करन असम्भव है।

इन तीन नाटकों के उपरान्त हर्ष का नाम अमगट 'तापसवत्सराज' तथा चैत्यवंदन, और सुप्रभात इत्यादि स्तोत्रों पर भी देखने में आता। परन्तु उपरोक्त दोनों स्तोत्र उसके लिखे हुये नही है ऐसा रा.रा. केशवलाल हर्षदराय ध्रुव ने अपने लेखों में सिद्ध कर दिया है[१]। स्थल संकोच के कारण इस पर अधिक विवचन नहीं किया जा सकता। भास और हर्ष की शैली में समता है तो इसपर से ऐसा कैसे कहा जा सकता है कि उक्त तीन


  1. नवजीवन अने सत्य' पुस्तक ४ अंक ४१५.