पण्डितों को और देवालयों ही को समर्पण किया। उसने वितस्ता के किनारे एक बहुत ही मनोहर शिवालय निर्म्माण कराया और एक महाविद्यालय भी अपने नाम से बनवाया। महारानी सुभटा के भाई का नाम क्षितिपति था। वह लोहर का राजा था। वह वीरता में भी अद्वितीय था और कवियों का सम्मान करने में भी।
सुभटा से अनन्तदेव का पुत्र कलश हुआ। उसने बाण कवि की बनाई कादम्बरी में उल्लिखित अच्छोद सरोवर को देखा; कैलाश के दर्शन किये; और यक्षों की नगरी अलका तक में प्रवेश किया। जब वह वहाँ से लौटा तब मानस सरोवर से कंचन के अनेक कमल अपने साथ लाया। स्त्री-राज्य को जीत कर वह चन्द्रभागा और यमुना के आगे कुरुक्षेत्र तक चला गया और उसे उसने अपने अधीन कर लिया।
कलश ने अपने पुत्र का नाम हर्षदेव रक्खा। हर्षदेव वीरों में अग्रणी हुआ और कविता में श्रीहर्ष से भी बढ़ गया। उसने अनेक भाषाओं में कविता की। कलश के दो पुत्र और हुए, एक का नाम उत्कर्ष ; दूसरे का विजयमल्ल।