पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/२९

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राजतरङ्गिणी में लिखा है कि ३५ वर्ष राज्य करके अनन्त ने अपने पुत्र कलश को सिंहासन पर बिठाया। यद्यपि उसने अपने पुत्र को राजा बनाया तथापि और १५ वर्ष तक वह राज्य कार्य देखता रहा। तदनन्तर अपने पुत्र की दुःशीलता से तंग आकर वह विजयक्षेत्र को चला गया। विजयक्षेत्र जाकर, अपने पुत्र के द्वारा बहुत सताये जाने पर उसने आत्महत्या कर ली। जनरल कनिंहाम के अनुसार अनन्त १०२८ ईसवी में सिंहासन पर बैठा और १०८० में मृत्यु को प्राप्त हुआ। कलश को यद्यपि १०६२ ईसवी में राज-गद्दी हुई, तथापि उसने राज्य का काम काज अनन्त के विजयक्षेत्र चले जाने के अनन्तर, अर्थात् १०८० ईसवी में, आरम्भ किया। इससे सिद्ध है, कि विक्रमाङ्कदेवचरित की रचना बिल्हण ने १०८० ईसवी के अनन्तर की। यदि ऐसा न होता तो वह अनन्त के लिए आसीत् 'अर्थात्' 'था' का प्रयोग न करता। इसका प्रमाण और भी दो बातों से मिलता है। एक तो यह, कि विक्रमाङ्कदेवचरित में उस चढ़ाई का वर्णन नहीं है जो विक्रमादित्य ने नर्मदा के इस पार मध्यभारत