वीरसिंह को मिला तब उसने क्रोध में आकर बिल्हण को प्राणदण्ड देने की आज्ञा दी। बिल्हण ने शशिकला के स्मरण में वधस्थान को जाते जाते यह पञ्चाशिका बनाई। इस कविता का वृत्तान्त किसी प्रकार वीरसिंह तक पहुँचा और उसने कविता की अपूर्वता से अत्यन्त प्रसन्न होकर बिल्हण का अपराध क्षमा कर दिया। यही नहीं, किन्तु, अपनी कन्या का विधिपूर्वक उनके साथ विवाह भी कर दिया। अण्हिलवार (अन्हिलव) वाड़ में वीरसिंह नाम का एक राजा अवश्य हो गया है; परन्तु फार्ब्स साहब की रासमाला के अनुसार उसकी मृत्यु ९२० ईसवी में, अर्थात् बिल्हण के १०० वर्ष पहले ही, हो चुकी थी। इसलिए वीरसिंह के यहाँ बिल्हण का रहना असम्भव सिद्ध होता है। अपने आत्मकथन में भी बिल्हण ने वहाँ रहने का उल्लेख नहीं किया।
किसी किसी पुस्तक में लिखा है कि बिल्हण ने मदनाभिराम नामक राजा की यामिनीपूर्णतिलका नामक कन्या के ऊपर यह पञ्चाशिका बनाई है। वहीं यह भी लिखा है कि, यह राजा पाञ्चालदेश के लक्ष्मीमन्दिर नामक नगर में हुआ