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पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/३८

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से पूर्वोक्त आख्यायिका सत्य प्रतीत होती है। बिल्हण कहते हैं-

अद्यापि तां नृपतिशेखरराजपुत्रीं
सम्पूर्णयौवनमदालसवूर्णनेत्रीम्।
गन्धर्वयक्षसुरकिन्नरनागकन्यां
स्वर्गादहो निपतितामिव चिन्तयामि ॥४५॥

अर्थात् स्वर्ग से गिरी हुई गन्धर्व, यक्ष, देवता, किन्नर अथवा नागकन्या सी पूर्ण-यौवनवती उस राजपुत्री को मैं अब तक (इस घोर विपत्ति के समय में भी) स्मरण कर रहा हूँ।

इससे सिद्ध होता है कि जिसकी चिन्तना बिल्हण को थी वह एक राजा की लड़की थी।

अद्यापि तां स्वभवनान्मयि नीयमाने
दुर्वारभीषणाकरैर्यमदूतकल्पैः।
किं किं तया बहुविधं न कृत मदर्थे
चक्षुर्न वार्यत इति व्यथते मनो मे ॥

अर्थात् यमदूतों के समान भयङ्कर हाथोंवाले मनुष्यों (वधिकों) के द्वारा अपने मन्दिर से मुझे लिये जाते देख उसने मेरे बचाने के लिए क्या क्या नहीं किया? उसका स्मरण होते ही मेरे मन को असह्य वेदना होनेलगती है।