जन्म उसकी राज्य-प्राप्ति, उसके युद्ध इत्यादि मुख्य ही मुख्य बातों का उल्लेख किया है; शेष काव्य को ऋतुओं के वर्णन, प्रातःकाल, सन्ध्या, चन्द्रोदय आदि के वर्णन और विक्रमाङ्कदेव की रानी के नख-सिख के वर्णन से पल्लवित करते करते उसे समाप्त कर दिया है। तथापि जिन मुख्य मुख्य बातों का उल्लेख बिल्हण ने किया है वे प्रायः सब सर डबलू इलियट के प्रकाशित किये हुए उन शिलालेखों और दानपत्रों से मिलती हैं जो कल्याण के प्राचीन चालुक्यवंशीय राजाओं के समय के अब तक पाये गये हैं। अब, हम, विक्रमाङ्क और उसके वंश का वृत्तान्त, जैसा और जिस क्रम से बिल्हण ने वर्णन किया है, वैसा ही और उसी क्रम से थोड़े में लिखते हैं।
बिल्हण का कथन है कि एक बार ब्रह्मा जिस समय समाधिस्थ थे उस समय इन्द्र उनके पास गये, और जाकर उनसे यह विनती की कि पृथ्वी पर अधर्म की वृद्धि हो रही है; अतएव आप एक ऐसा पुरुष उत्पन्न कीजिए जिससे भयभीत होकर दुराचारी अपने अपने दुराचार को छोड़ दें। यह सुनकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डलु की ओर देखा और