पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(३९)


जब आहवमल ने देखा कि विक्रमादित्य धनुर्विद्या में कुशल और युद्धक्षेत्र में जाने के लिए उत्सुक है तब उसने उसे अपना युवराज बनाना चाहा। परन्तु विक्रम ने इस बात को स्वीकार न किया। उसने कहा कि युवराज का पद उसके अग्रज सोमदेव को मिलना चाहिए। आहवमल्ल ने बहुत समझाया कि शङ्कर ने आकाश-वाणी द्वारा उसे ही प्रजापालन के योग्य होने की सूचना दी है, तथापि विक्रम आदरपूर्वक, परन्तु दृढ़ता के साथ, उस पद को अस्वीकार हो करता गया। विवश होकर आहवमल्ल ने सोमेश्वर को, युवराज नियत करके, अपने अनन्तर अपने राज्य का अधिकारी बनाया। राज्यलक्ष्मी और पिता का पवित्र प्रेम, तथापि, विक्रम ही की ओर रहे। राजा और युवराज के काम भी वही करता रहा। सोमेश्वर नाममात्र को युवराज था[१]। अपने पिता आहवमल्ल की आज्ञा से, कुछ काल के अनन्तर, विक्रम युद्ध यात्रा के लिए


  1. बिल्हण ने यहां पर भी विक्रम का पक्ष लिया जान पड़ता है। अपने बड़े भाई की ओर उसकी उदारता इत्यादि का वर्णन करके उसने विक्रम ही को राज्य पाने के योग्य होने का इशारा किया है।