यथा समय आहवमल्ल की रानी के पहला पुत्र हुआ। उसका नाम सोमेश्वर रक्खा गया। जब दूसरी बार रानी गर्भवती हुई तब उसे विचित्र प्रकार के दोहद पूर्ण करने की इच्छा होने लगी। कभी उसने दिग्गजों की पीठ पर अपना पैर रखना चाहा; कभी अप्सराओं से अपने पैर मलाने चाहे और कभी खड्गों को, उसने इस प्रकार, देखा मानों उनकी धारा के जल को वह पी लेना चाहती थी। अस्तु। बड़े शुभ मुहूर्त में आहवमल्ल के दूसरा पुत्र उत्पन्न हुआ। उस समय आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी; इन्द्र की दुन्दुभी बजने लगी, और सब ओर आनन्द-प्रदर्शक गान सुनाई देने लगे। इस बालक का नाम विक्रमादित्य रक्खा गया। वह अपने पिता का अतिशय प्यारा हुआ। खेल में भी वह अद्भुत वीरता के लक्षण दिखलाने लगा। कभी वह हंसों की मृगया करता; और कभी पिँजरों में पड़े हुए सिंह के बच्चों को सताता। कुछ दिन में वह पढ़ने लिखने में भी कुशल हो गया और धनुर्विद्या में भी। विक्रम के अनन्तर आहवमल्ल के तीसरा पुत्र हुआ। उसका नाम जयसिंह रक्खा गया।
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