पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/५८

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सम्मुख पाई तब उसने उसके कंठ में माला डाल दी। दर्शकों ने उसके इस कृत्य की आल्हादसूचक वाक्यों से अनुमोदना की। तदनन्तर चन्द्रलेखा और विक्रम ने शीघ्र ही अन्तःपुर में प्रवेश किया।

स्वयंवर समाप्त हो जाने पर निराश हुए दूसरे राजाओं ने वहाँ से प्रस्थान किया। उनमें से कई राजाओं ने कोप-व्यञ्जक काम किये होते; परन्तु चालूक्य-नरेश के भय से वे चुप चाप वहाँ से चले गये। विक्रम और चन्द्रलेखा करहाट ही में कुछ काल तक रहे। उस समय बसन्त[१] तो थाही; प्रातः काल वे दोनों पुष्पवाटिका में घूमने जाया


  1. बिल्हण ने सातवें सर्ग में दोला और बसन्त का वर्णन; आठवें में चन्द्रलेखा के स्वरूप का वर्णन; दसर्व में वनविहार, पुष्पावचय और जल विहार वर्णन; ग्यारहवे में संध्या, चन्द्रोदय, इत्यादि का वर्णन करके ग्रन्थ को बहुत बढ़ा दिया है। विक्रम के चरित से और इन बातों से बहुत कम सम्बन्ध था; परन्तु अलंकार-शास्त्र के अनुसार चरित को काव्य के लक्षणों से लक्षित करने ही के लिए बिल्हण को इतना परिश्रम करना पड़ा।