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पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/५७

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निश्चय किया है। उसके पिता ने भी यह बात स्वीकार करली है।

स्वयंवर शीघ्र ही होने वाला था; अतएव विक्रम ने करहाट के लिए शीघ्र ही प्रस्थान किया। वहाँ पहुँचने पर, यथोचित आदर-सत्कार के अनन्तर, करहाट-नरेश ने उसे स्वयंवर के मण्डप में प्रवेश कराया। वहाँ विक्रम ने देखा कि अनेक देशों के राजा महामनोमोहक वेष बनाये हुए अपने अपने स्थान पर आ बैठे हैं। विक्रम के आसन ग्रहण करने पर चन्द्रलेखा भी प्रतीहारी के साथ मंडप में आई। प्रतीहारी बड़ी चतुर और बहुश्रुत थी। आये हुए राजाओं के चरित से वह भली भांति परिचित थी। उसने प्रत्येक राजा का वर्णन बड़ी योग्यता से किया। अयोध्या, चेदी, कानकुब्ज, चर्मणवती, कालिंजर, गोपाचल, मालव, गुर्जर, पांड्य और चोल आदि देशों के नरेशों की प्रशंसा में प्रतीहारी ने क्रम कम से बहुत कुछ कहा; परन्तु उनमें से एक भी चन्दलेखा के मन न आया। अनेक प्रकार की भाव-भङ्गियों से एक एक राजा को अपने मनोनुकूल न होने की सूचना देती हुई चन्द्रलेखा आगे बढ़ती गई। जब वह विक्रम के