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चन्दन के लेप से शुभ्रवर्णवाला, उन्नत्त देहधारी, यह पाण्ड्य-नरेश है।
पापड्योऽयमंसापितलम्बहार:
क्लृप्ताङ्गरागो हरिचन्द्रनेन ।
रघुवंश, सर्ग ६ पद्य ६० ।
हरिचन्दन का अङ्गराग लगाये हुए, और कंधों से हार को लम्बा लटकाये हुए, यह पाण्ड्य-देश का राजा है।
[३]
तत्रापि साऽभूद् गुणभाजनेऽपि
पराङ्मुखी श्रीरिव भाग्यहीने ।
विक्र०, सर्ग ६. पद्य ५२१ ।
भाग्यहीन से जिस प्रकार लक्ष्मी दूर हट जाती है, उसी प्रकार, सद्गुणी होने पर भी उस राजा से वह कन्या हट गई ।
तस्मादपावर्तत दूरकृष्टा
नीत्येव लक्ष्मी: प्रतिकृत्लदैवात् ।
[{right|रघुवंश, सर्ग ६, पद्य ५८ ।|8em|}}
नीतिपूर्वक दर से लाई हुई लक्ष्मी जैसे भाग्यहीन के पास से चली जाती है वैसे ही वह कन्या भी उस राजा के पास से चली गई।