सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(७२)


और सब कामों को छोड़नेवाली नगर-नारियों की, इस प्रकार, चेष्टायें हुई।

[६]

अपि शरधिविकृष्टैश्चिच्छिदे कङ्कपत्रै-
र्निकटमपि न रोहिद्गर्भिणी चक्रवालम् ।
स्मरणसरणिमागाद्गर्भभारालसानां
विलासतमबत्नानां यद्बलाद्भूमिभर्तुः ॥

विक्र०, सर्ग १६, पद्य ४५ ।

बहुत निकट आई हुई भी गर्भिणी-हरिणियों पर, बाणों को तरकस से खींच कर के भी, उसने न छोड़ा; क्योंकि सगर्भा कामनियों की विलासचेष्टाओं का उस समय उसे स्मरण हो पाया।

अपि तुरगसमीपादुत्पतन्तं मयूरं
न स रुचिरकलापं बाणलक्ष्याचकार ।
सपदि गतमनस्कश्चित्रमाल्यानुकीर्णे
रतिविगलितबन्ध्ये केशपांश प्रियायाः ॥

रघुवंश, सर्ग ६, पद्य ६७ ।

घोड़े के पास से भी निकलजाने वाले रुचिर पक्षधारी मयूर पर उस (दशरथ) ने बाण न चलाया। मयूर को देख, चित्र विचित्र फूलों से