पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/८१

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काव्य-सम्बधिनी पद-रचना के विषय में बिल्हण अपना मत लिखते हैं:-

प्रौढिप्रकर्षण पुराणराीति-
व्यतिक्रमः श्लाच्यतमः पदानाम् ।
अत्युन्नतिस्फोटितकञ्चुकानि
वन्द्यानि कान्ताकुचमण्डलानि ॥

सर्ग १, पद्य १५ ।

पदों को अधिक प्रौढ़ करके पुरानी रीति की प्रतिकूलता करना ही अच्छा है-अत्यन्त उन्नति के कारण कञ्चुकी को फाड़ने वाले कान्ता के कुचमण्डल की प्रशंसा ही होती है।

कल्याण-नगरी के वर्णन के अन्तर्गत वहाँ की कामिनियों का वर्णन :-

अविस्मृतत्र्यम्बकनेवपावकः
स्मरः स्मितेन्दीवरदीर्घचक्षुपाम्।
विलासपीयूषनिधानकुम्भयो-
र्नं यत्र वासं कुचयोर्विमुञ्चति।

सर्ग २, पद्य १६ ।

विलोचन के तीसरे लोचन से निकली हुई आग को अब तक न भूलने वाला काम, कल्याण में रहने वाली कमल-नयनी-नारियों के विलासा-