पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/८२

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मृत से भरे हुए कुम्भरूपी स्तनद्वय में अपना निवास-स्थल बनाकर उसे एक मिनट के लिए भी नहीं छोड़ता! जले हुए को पियूष से अधिक और क्या हितकार हो सकता है!

जिस समय विक्रमादेव गर्भ में था उस समय उसकी माता की अवस्था का वर्णन:-

निपीड्य चन्द्रं पयसे निवेशिता
ध्रुवं तदीयस्तनकुम्भयोः सुधा ।
यदुत्पलश्यामलमाननं तयोः
सलाञ्छनच्छायमिव व्यराजत ॥

सर्ग २, पद्य ६३ ।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि चन्द्रमा को निचोड़कर उससे निकला हुमा अमृत उस राज-महिषी के स्तनरूपी घड़ों में भर दिया गया। अन्यथा नील-कमल के समान उनका मुख, चन्द्रमा के काले कलङ्क की तरह, क्यों शोभायमान होता? बिल्हण जी! जैसी आपकी रसिकता वैसी ही आप की उक्ति! अब पाप की और तरह की उक्तियाँ सुनिए।

राज्य पाने के अनन्त र सोमेश्वर का लक्ष्मीमदः-

मदिरेव नरेन्द्रश्रीस्तस्याभून्मदकारणम् ।
न विवेद परिभ्रष्टं यदशेषं यशोऽशुकम् ॥

सर्ग ४, पद्य ६८ ।