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पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/८७

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परिशिष्ट ।

(१)

यह निबन्ध लिख चुकने पर 'बिल्हण काव्यम्' नामक एक छोटी सी पुस्तक हमारे देखने में आई। इसके अन्त में लिखा है:--

इति काश्मीरिकबिल्हणकविविरचितं
बिल्हणचरितापरनामधेयं

चन्द्रलेखासक्त-बिल्हणकाव्यम्

इससे सूचित होता है कि खुद बिल्हण ही ने इसे बनाया है। क्योंकि बिल्हण नाम का और कोई कवि नहीं सुना गया। परन्तु यह ठीक नहीं। इस कविता में बिल्हण को एक तृतीय पुरुष मान कर सब बातें वर्णन की गई हैं । फिर इस पुस्तक च्युत-संस्कृत दोष भी बहुत है। एक और बात यह है कि इसमें:-

"नीतानि नाशं जनकात्मजार्थं
दशाननेनापि दशाननानिए