पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/८८

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आदि, विद्यासुन्दर आदि काव्यों के भी श्लोक हैं। अतएव बिल्हण के बाद होने वाले कवियों की कविता का इसमें पाया जाना यह साबित करता है कि इसके कर्ता बिल्हण नहीं। किसी और ही ने इसकी रचना बिल्हण के नाम से कर दी है। सम्भव है काश्मीर में और कोई बिल्हण हुआ हो। उसी ने इसे लिखा है।

इस पुस्तक में सिर्फ बिल्हण और शशिकला की आख्यायिका है। इसी आख्यायिका के आधार पर इसकी रचना हुई है। इसमें यह आख्यायिका इस प्रकार वर्णन की गई है:-

गुजरात में महिलपत्तन एक जगह है। वहाँ वीरसिंह नाम का एक राजा था। उसने अवन्ती के राजा अतुल की कन्या सुतारा से विवाह किया। सुतारा के गर्भ से शशिकला नाम की एक लड़की पैदा हुई। उसके अध्यापन का विचार राजा कर रहा था कि काश्मीर के पण्डित बिल्हण वहाँ पहुँचे । बिल्हण की तारीफ़ राजपुरोहित राजहंस ने वीरसिंह से की। वीरसिंह बिल्हण से मिलकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने चन्द्रकला को बुला कर उसके अध्यापन का काम बिल्हण के सिपुर्द किया।