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यावच्छुतं सुवचनं सुकवेस्तयेत्थं
किञ्चिद्विहस्य तुहिनांशुकला बभाषे॥
अर्थात् जिस कमलिनी ने चन्दबिम्ब का दर्शन न किया उसका जन्म ही वृथा है। इस उक्ति को सुन कर चन्द्रकला ने कहाः-
हृष्टानि कोकमिथुनानि भवन्ति यैश्च
सूर्याशुभिर्जगदिदं निखिन्नार्थमेति ।
सम्पूर्णतापि शशिनश्च हि निष्फल्नैव
दृष्टा यया न नलिनी परिपूर्णरूपा ॥
अर्थात् जिस चन्द्रमा ने कमलिनी का दर्शन न किया उसकी सम्पूर्णता भी तो निष्फल है। मतलब यह कि दोनों ने परस्पर एक दूसरे को देखना चाहा। जवनिका हटी। उनका पारस्परिक मनोरथ सिद्ध हुआ।
इसके बाद बिल्हण और शशिकला बराबर मिलते रहे। धीरे धीरे यह बात शशिकला की परिचारिकाओं को मालूम हो गई। उन्होंने राजपुरोहित से कहा। पुरोहित ने एक स्त्री के द्वारा सन्देश भेज कर बिल्हण को इस गर्हित व्यवहार से विरत होने की सलाह दी। पर बिल्हण ने उस की एक न सुनी।