सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(५)


तब पुरोहित ने वीरसिंह को खबर दी। अन्त में मन्त्रियों की सलाह से बिल्हण को सूली पर चढ़ाने का हुक्म हुआ। बिल्हण शशिकला के मन्दिर में पकड़े गये। उन्हें वधिकों ने बाँधा और वध्यभूमि को ले चले। वहाँ उनसे कहा गया कि स्नान करके अपने इष्ट देव का स्मरण कीजिए। बिल्हण ने कहा हमारी इष्ट देवता राज-कन्या ही है। अतएव उसी का हम चिन्तन करते हैं। यह कह कर मापने अपनी प्रसिद्ध पञ्चाशिका की रचना प्रारम्भ की और पचास पद्य बराबर पढ़ते गये। ये पद्य भी इस पुस्तक में हैं। अन्त में आपने कहा कि हमने जो कुछ पुण्य किया है। उसका फल हम यही चाहते हैं कि हर जन्म में शशिकला ही हमारी पत्नी हो! यह कह कर आप वध किये जाने के लिए तैयार हो गये। जो राजसेवक बिल्हण के साथ वधस्थल पर गये थे वे बिल्हण की कविता, दृढ़ता और चन्द्रकला-विषयक अकृत्रिम प्रीति देख कर चकित हो उठे। उन्होंने राजाज्ञा पर बहुत दुःख प्रकट किया और कहा कि हम ब्रह्महत्या की गुरुता को जानते हैं पर राजा की आज्ञा को टाल नहीं सकते। लाचारी हैं कुछ स्त्रियों ने भी यह सब दृश्य देखा।