पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/९३

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घोड़े और धन भी दिया। पुस्तक के अन्त में लिखा है कि जो लोग इस चरित को पढ़ेगे उनको अन्त में परमधाम की प्राप्ति होगी!

विचार करने से मालूम होता है कि सुनी हुई पुरानी आख्यायिका के आधार पर ही किसी ने इस काव्य की रचना पीछे से की है। यह काव्यमाला तेरहवें गुच्छक में छपा है। इसके निर्माण-काल और कर्ता आदि का वहाँ पर कुछ भी उल्लेख नहीं, कहाँ से इस काव्य की प्रतियाँ काव्यमाला के सम्पादकों को मिली, यह भी नहीं लिखा । खैर जो कुछ हो, बिल्हण-विषयक सब बातों का सन्निवेश इस निबन्ध में करने के लिए हमने इस काव्य का सारांश भी लिख दिया।

डफ नाम की एक विदुषी ने अँगरेजी में एक किताब लिखी है। उसमें इस देश की प्राचीन घटनाओं आदि का संक्षिप्त उल्लेख और उनके सन् संवत् दिये हैं। पर महिलपत्तन नामक नगर का नाम न तो हमें इस पुस्तक में मिला और न और ही कहीं। वह अन्हिल-पत्तन काही अपभ्रंश जान पड़ता है। रहा वीरसिंह का काल सो वह बिल्हण के सौ वर्ष पहले ही सिद्ध होता है। सम्भव