पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/९९

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क्षरा के अन्त में जो तीन श्लोक हैं उनसे साबित होती है। ये श्लोक बहुत करके मिताक्षरा की सभी हस्त-लिखित प्रतियों में पाये जाते हैं इनका मतलब है-"दुनिया में कल्याण ऐसा शहर नहीं, विक्रमादित्य ऐसा राजा नहीं, और विज्ञानेश्वर ऐसा पण्डित नहीं। विक्रमादित्य राजा यावश्चन्द्रदिवाकर जीवित रहे! उसकी वाणी से शहद टपकता है। वह याचकों को यथेच्छ धन देता है। वह विष्णु का ध्यान करता है। उसने षडिपुओं को जीत लिया है। पश्चिम समुद्र से लेकर पूर्व-समुद्र तक जितने राजे हैं सब उसके आज्ञाकारी हैं।"

इससे मालूम होता है कि बिल्हण और विज्ञानेश्वर का आश्रयदाता विक्रमादित्य बड़ा प्रतापी राजा था। उसके समय के कोई दो सौ शिलालेख मिले हैं, जो इस बात की पुष्टि करते हैं।