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विचित्र प्रबन्ध।

में नहीँ, योग में नहीं, किन्तु जनता मेँ और कर्म-क्षेत्र में यहाँ भगवान् प्रकट हैं। भुवनेश्वर के मन्दिर ने संसार को―जनममूह को―देवालय के रूप में व्यक्त कर रक्खा है। उसने समष्टि रूप से मनुष्य को देवता के पद पर प्रतिष्टित किया है। उसने पहले छोटे-बड़े सब मनुष्यों को अपने पत्थर के चित्रपट पर एक करके सजाया है, और फिर दिखलाया है कि इनमें जो परम ऐक्य है वह कहाँ है और कौन है। इस महान् एकता का हृदय-पट में आविर्भाव होने से प्रत्येक मनुष्य समग्र मनुष्य से मिल कर महान् है। पिता के साथ पुत्र, भाई के साथ भाई, पति के साथ पन्नो, पड़ोसी के साथ पड़ोसी, एक जाति के साथ दूसरी जाति, एक काल के साथ दुसरा काल, एक इतिहास के साथ दूसरा इतिहास देवात्मा के द्वारा एकात्म भाव का प्राप्त हो गये हैँ―एक में लीन हो गये हैं।


छोटा नागपुर

मैं रात को हवड़े में रेलगाड़ी पर सवार हुआ। रेल पर झोंके खा खाकर नींद जैसे टुकड़े टुकड़े हो जाती है। होश-औँधाई, सोना-जागना, इनकी एक खिचड़ी सी पकने लगती है। बीच बीच में रोशनी देख पड़ती है―घंटे की आवाज़, मनुष्यों का कोलाहल, अद्भुत स्वर से स्टेशनों का नाम पुकारा जाना सुन पड़ता है। ठन् ठन् ठन् करके तीन बार घंटा बजा और ये बातें दम भर में ग़ायब हो गई। फिर सब ओर अन्धकार और सन्नाटा छा जाता है। केवल तारागण से परिपूर्ण रात में गाड़ी के पहियों का धर्धर शब्द