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योरप की यात्रा।

की अन्तिम सीमा मेँ आकर एक क्षण के लिए पश्चिम अस्ताचल की ओर मुँह करके खड़ा हुआ है। समुद्र के जल में जो यह सुन्दर वर्ण का विकास देख पड़ता है वह आकाश की छाया है या समुद्र का प्रकाश, इसका ठीक निर्णय नहीं किया जा सकता। जैसे माहेन्द्रयोग के समय आकाश की नीरव निर्निमष नीली दृष्टि के पड़ने से एकाएक समुद्र की भारी गंभीरता के भीतर से एक अलौकिक प्रतिभा की दीप्ति ने स्फूर्ति पाकर उसे अपूर्व महिमा से मण्डित कर दिया है।

सन्ध्या हो गई। टन् टन् टन् कर के घण्टा बजा। सभी अपने कपड़-लत्ते उतार कर सन्ध्या के भोजन के लिए तैयार होने लगे। आधे घण्टे के बाद फिर घण्टा बजा। झुंड के झुंड स्त्री-पुरुष भोजनशाला में जाकर उपस्थित हुए। हम तीनों बङ्गालियों ने अलग एक टेबल पर अपना अधिकार जमाया। हम लोगों के सामने ही एक दूसरी टेबल पर दो औरतें भोजन के लिए बैठीं; एक उपासक-दल उनको चारों ओर से घेरे हुए था।

मैंने देखा कि, उनमें एक युवती अपने यौवन की शोभा बहुत अधिक खोले हुए हँस हँस कर भोजन, और लोगों से बातें भी, कर रही है। उसके शुभ्र गोल और चिकने गले, छाती और बाहुओं पर सारी बिजली की रोशनी और पुरुषमण्डल की दृष्टि पड़ रही है। मानोँ एक खुली हुई दीप-शिखा को देख कर लोगों की दृष्टियाँ काले काले पतङ्गों के समान उस पर झुक पड़ी हैं। बहुत तो घूम घूम कर उसे देख रहे हैं और उसी बात को लेकर वहाँ सब जगह हँसी-मज़ाक़ हो रहा है। बहुत से सज्जन उस युवती की पोशाक