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विचित्र प्रबन्ध।

अब पर्वत-माला दीख पड़ी। पहाड़ ऊपर से नीचे तक अंगूर की लताओं से ढँके हुए हैं। उन्हीं के बीच में बस्ती भी है।

रेल की लाइन के पास ही एक अंगूर का खेत है। उसमें एक छोटा सा घर है। वहीं एक हाथ से द्वार पकड़ कर और दूसरा हाथ कमर पर रख कर एक इटली की युवती रमणी खड़ी है और वह अपनी काली काली आँखों से हमारी गाड़ी का चलना देख रही है। उससे थोड़ी दूर पर एक बालिका एक बड़े माँग वाले बैल की रस्सी पकड़े खड़ी है और निश्चिन्त होकर उसे चरा रही है। यह देखने से मुझे बंगाल के नवीन दम्पति का चित्र स्मरण हो आया। एक भारी चश्मा लगाये दाढ़ी-मूछों वाला प्रेजुएट है, और उसकी रस्सी पकड़े हुए है एक बारह तेरह वर्ष की बुलाकधारिणी वधू। यह पशु ख़ूब वश में है और चरता-फिरता है। और बीच बीच में आँखें फाड़ फाड़ कर अपनी मालकिन की और भी देखता जाता है।

टूपरिन स्टेशन पर हम लोग पहुँच गये। इस देश के सामान्य पुलिसमैन की पोशाक देखकर अवाक् होना पड़ता है। कलँगीदार टोपी, ज़री के कपड़े, कमर से लटकती हुई तलवार आदि देखने से मालूम होता है कि यह सम्राट् का बड़ा लड़का ही है।

दाहने-वायें दोनों ओर बर्फ़ से ढकी हुई नीली पर्वतमाला है और बाईं ओर सघन छायावाला वन। जहाँ वन का ताँता टूट गया है वहीं अन्न के खेत, वृक्ष तथा पर्वतों का एक विलक्षण दृश्य देख पड़ता है। पर्वत के शिखर पर एक पुराना किला है और पर्वत के नीचे छोटे छोटे गाँव हैं। ज्यों ज्यों गाड़ी आगे जाती है त्यों त्यों