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योरप की यात्रा।

पत्थर के टुकड़ों के बेड़े से खेत घिरे हुए हैं। बीच बीच में पक्के कुएँ हैं और कहीं कहीं एक आध घर।

सूर्यास्त का समय हो आया। मैं आगे अंगूरों का गुच्छा रक्खे अंगूर खा रहा हूँ। ऐसे मीठे स्वादिष्ट और सुगन्धित अंगूर मैंने पहले कभी नहीं खाये थे। माथे पर रंगीन रूमाल बाँधे हुए अंगूर बेचने वाली इस इटली की युवती को देख कर मेरे मन में यही आता है कि इटली की स्त्रियाँ यहाँ के अंगूरों के गुच्छों के समान हैं। ये भी उसी तरह सुडौल, सुन्दर और यौवन-रस से परिपूर्ण हैं। इनके मुँह का रंग भी अंगूर के समान है। ये अधिक गोरी नहीं होतीं।

इस समय हम लोग समुद्र के ऊँचे किनारे से होकर जा रहे हैं। हम लोगों के ठीक नीच दाहनी और समुद्र है। ऊँची नीची ज़मीन ढालू होती हुई समुद्र-तीर तक चली गई है। चार पाँच नावें तीर पर लाई गई हैं। उन पर से 'पाल' हटा लिये गये हैं। नीचे के मार्ग से गधों पर चढ़े लोग आ-जा रहे हैं। समुद्र के तीर पर गाय-बैल चर रहे हैं। वे क्या खाते हैं, यह तो उन्हींको मालूम होगा। कहीं कहीं सूखे तृण केवल दीख पड़ते हैं।

८ सितम्बर। कल एड्रियाटिक के समतल श्री-हीन किनारे से होकर हम लोग आये थे और आज लम्बार्डी की शस्य-श्यामला भूमि से होकर हमारी गाड़ी जा रही है। चारों ओर अंगूर, जल- पाई, भुट्टे और शहतूत के खेत हैं। कल मैंने अंगूर की छोटी छोटी लताएँ देखी थीं, और आज देख रहा हूँ कि अंगूर की बड़ी बड़ी लताएँ सारे खेत में लकड़ियों के ऊपर फैली हुई हैं। बीच बीच में अंगूर के गुच्छे देखने मेँ बड़े सुहावने मालूम पड़ते हैं।