पञ्चभूत। २३५ का है उसे उसी रूप में रखना ही यथेष्ट है। कोई कोई ऐसे हैं कि जो वस्तु वर्तमान है उसकी ओर तो उनका ध्यान ही नहीं जाता, वे बन्तु के स्वरूप की रक्षा करना आवश्यक नहीं समझते; किन्तु उस वस्तु के प्राणों को प्रकाशित करना चाहते हैं। जो लोग पदार्थों का सारांश बाहर निकाल कर दिखा सकते हैं उनका धन्यवाद दंना चाहिए और उनका कृतज्ञ बना रहना चाहिए। क्योंकि वे इस बात का प्रमाणित करते हैं कि कितने में प्राण हैं और कितने प्राणों को प्रकाशित करने की योग्यता रखते हैं। वायु ने हँसकर कहा-दीप्ति, मुझे क्षमा करना। ऐसी दीनता का अनुभव मुझे स्वप्न में भी नहीं हुआ कि मैं तृण हूँ। मैं अपने विषय में यही बात समझता हूँ कि मैं खान का हीरा हूँ। आवश्यकता है उस जौहरी की जो मेरी परख करलें । मैं उसी की प्रतीक्षा भी करता हूँ। ज्यों ज्यों दिन बीतते जाते हैं त्यों त्यों मेरा विश्वास भी अधिक बढ़ता जाता है कि इस पृथिवी में रत्नों का उतना अभाव नहीं है जितना अभाव उसके परखनेवालों का है। युवा अवस्था में मुझे संमार में मनुष्य नहीं देख पड़ते थे। मैं उस समय समझता था कि अच्छे मनुष्य कंवल नाटक उपन्यास और महाकाव्यों में ही हैं, संसार में नहीं हैं। पर आज देख रहा हूँ कि संसार में अनेक मनुष्य हैं। हाय, पागल मन, तूने मनुष्यों को पहचाना क्यों नहीं ? पागल मन, तू एक बार संसार में प्रवेश करके देख ले कि मनुष्यों के हृदय में भीड़ लगी हुई है। जो सभा में नहीं बोलते वे वहाँ बातें कर रहे हैं, संसार में जो उपेक्षा की दृष्टि से देखे जाते हैं उनके लिए वहाँ उच्चासन रक्खा हुआ है; संसार में जो निकम्मे अनावश्यक समझे
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