पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२६७

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विचित्र प्रबन्ध । वह असीम बलवान है परन्तु उसमें जीवनी शक्ति और धारण करने की शक्ति नहीं है। वह न तो किसी पदार्थ को उत्पन्न ही कर सकता है और न किसी का पालन हो । यदि इस दृष्टान्त में किसी को कुछ आपत्ति न हो तब तो मैं यही कहूँगा कि मनुष्य का वह चञ्चल बाहरी भाग पुरुष है और विशाल, गूढ और अचेतन भाग स्त्रो है। समाज में स्त्री और पुरुषों का यही स्थान है । यही उनका आदर्श है। समाज का जो कुछ अर्जन, ज्ञान, शिक्षा आदि हैं वह सब स्त्रियों के पास जाकर चिरस्थायी होता है। इसीसे उनमें ऐसी स्वाभाविक बुद्धि और शोभा देखी जाती है। इसी कारण बिना शिक्षा के ही वे निपुण होती हैं । मनुष्य-समाज में स्त्रियों की सृष्टि बहुत पहले की है, अतएव उनकं अभ्यास दृढ़ और पुरान हो गयं हैं; नित्य कियं जानेवाले कामों के समान उनके कर्त्तव्य उन्हें अभ्यस्त हो गये हैं । समय के अनुसार उपस्थित होनेवाली प्राव- श्यकताओं के कारशा पुरुष सदा परिवर्तित होता रहता है और पुरुषों की उम चञ्चलता का, उस परिवर्तन का इतिहास स्त्री-समाज मैं, तह पर तह के ढंग से, सदा स्थित रहता है । पुरुष एक समूह के अंश हैं । वे अपनी पूर्णता से बिछड़े हुए हैं और उनमें सामञ्जस्य भी नहीं है, परन्तु स्त्रियाँ सम्पूर्ण हैं अखण्ड हैं। इनकी तुलना एक गान से की जा सकती है। गान जिस प्रकार सम पर माने पर पूर्ण हो जाता है वही हाल स्त्रियों का है। गीत में नये नये पद और तान को जितना चाहो उतना मिला दो तो भी उसकी पूर्णता में किसी प्रकार की त्रुटि नहीं होती। 1