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विचित्र प्रबन्ध।

पड़ता है। यदि ऐसा न किया जाय तो चलना कठिन है। इसी कारण आगे बढ़ने के लिए परिचित रीतियों का त्याग करना ही विधाता का नियम है।

बायु ने कहा―इस कथा के अन्त में एक शाप है, उसका उल्लेख तुम लोगों में से किसी ने नहीं किया। विद्या प्राप्त कर और देवयानी का प्रेम-बन्धन ताड़कर कच ने जब यात्रा की थी तब देवयानी न कच को शाप दिया था। शाप यह था―तुमने जो विद्या सीखी है वह तुम दूसरे को सिखा सकते हो परन्तु उमसे स्वयं लाभ नहीं उठा सकते। इस शाप के सम्बन्ध में मैंने एक तात्पर्य निकाला है। यदि आप लोग सावधान होकर सुनना चाहें तो मैं कहूँ।

क्षिति ने कहा―यह पहले से कैसे कहा जा सकता है कि सुनने के समय सब लोग सावधान रह सकेंगे या नहीं। संभव है, प्रतिज्ञा की जाने पर भी अन्त में प्रतिज्ञा का पालन न हो सके। आप अपना तात्पर्य कहना शुरू कर दें, यदि पीछे आपको हम लोगों की दशा पर दया आवे तो अपना कथन अधूरा रहने दीजिएगा।

वायु ने कहा―जिस विद्या से जीविका में सहायता मिले उस को मञ्जीवनी विद्या कहते हैं। मान लो, कोई कवि उस विद्या को स्वयं सीखकर औरों को सिखाने के लिए इस संसार में आया है। अपने स्वाभाविक स्वर्गीय सामर्थ्य से उसने संसार को प्रसन्न कर लिया और वह विद्या भी सीख ली। उसका इस संसार पर प्रेम भी है, परन्तु जब संसार ने उससे कहा― आओ, तुम हमारे बन्धन में बँध जाओ, उस समय वह कहता है कि जो मैं तुम्हारे बन्धन में बँध जाऊँ, तुम्हारे आवर्त्तों में जो मैं भी चक्कर खाने लगूँ, तो