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विचित्र प्रबन्ध।

समझती हूँ कि ये साधारण बातें ही कविता के लिए उपकरण हैं। राजपुत्र होकर, सब तरह के सुखों की सम्भावना रहने पर भी, श्रीराम और सीता को बड़े बड़े दुःख और सङ्कटों में अपना सारा जीवन बिताना पड़ा है। जैसे व्याध पक्षियों का पीछा करता रहता है उसी प्रकार दुःख ने जीवन भर रामचन्द्र और सीता का पीछा किया है। यह संसार में अवश्य होनेवाली घटना और मनुष्य के अभाग्य की पुरानी दुःख-कथा पाठक बड़े प्रेम से पढ़ते हैं और पढ़कर पुलकित होते हैं । शकुन्तला कं प्रेम-बन्धन में वास्तव में कोई नई शिक्षा नहीं है। उसमें कंबल यही अत्यन्त प्राचीन तथा सीधी सादी बात है कि अच्छे या बुरे अवसर पर प्रेम बड़े वेग से आकर स्त्री-पुरुष को एक द्दढ़ बन्धन में बाँध देता है―उनके हृदय को एक बना देता है। शकुन्तला में यही प्रसिद्ध और सीधी बात है। इसी कारण लोगों में उसका बड़ा प्रचार और आदर है। कोई कोई कह सकते हैं कि द्रौपदी के चीर-हरण का अभिप्राय यह है कि मृत्यु तरु-लता, जीव-जन्तु तृण आदि से आच्छादित इस पृथिवी का वस्त्र खींच रही है, परन्तु भगवान् की कृपा से पृथिवी के वस्त्र का कभी अन्त नहीं होता। सदा ही वह प्राण-मय सुन्दर वस्त्रों से विभूषित हो रही है। परन्तु सभा-पर्व के जिस स्थान पर हम लोगों के हृदय का खून उबल पड़ता है और अन्त को अमहाय भक्त पर भगवान् की कृपा देख कर आँखों से आंसुओं की झड़ी लग जाती है उसका कारण क्या यह नवीन और विशेष ‘अभिप्राय’ है? अथवा अत्याचार-पीड़ित एक स्त्री की लज्जा और लज्जानिवारण नामक एक प्राचीन और स्वाभाविक कथा है? कच