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पञ्चभूत।

मत का स्पष्ट विरोध नहीं करता। इसलिए उसने मुसकुराकर कहा-परन्तु बड़े बड़े समालोचकों ने इस कवि को ऊँचा आसन दिया है।

दीप्ति ने कहा―अग्नि में जलाने की शक्ति है, इस बात को बतलाने के लिए किसी समालोचक की सहायता दरकार नहीं होती। वह तो भाग में उँगली डालते ही मालूम हो जाती है। जिस कविता की उत्तमता अनायास न जानी जीसके उसकी समालोचना पढ़ कर उत्तमता जानने का प्रयत्न करना मेरी ममझ में अनावश्यक है।

अग्नि में जलाने की शक्ति है, यह बात वायु भी जानता था इसलिए वह चुप हो रहा। पर बेचारे व्योम का इन बातों से जानकारी तो थी नहीं, अतएव वह ज़ोर देकर यो कहने लगा―मनुष्य का मन मनुष्य को छोड़ कर चला जाता है और प्रायः वह पकड़ा भी नहीं जाता;―

व्योम को बीच ही में रोक कर क्षिति ने कहा―त्रेतायुग में हनुमान् की पूछ भी सौ योजन लंबी थी और वह उनसे अलग बहुत दूर पर रहती थी। यदि कभी उनकी पूँछ पर मच्छर बैठ जाता था तो उसको उड़ाने के लिए घोड़े की डाक बैठानी पड़ती थी। मनुष्य का मन हनुमानजी की पूँछ से भी बड़ा होता है। इसी कारण कभी कभी मन अगर कहीं दूसरी जगह चला जाता है तो समालोचक को घोड़े की डाक पर बैठ कर वहाँ जाना पड़ता है। पूँछ से मन में केवल अन्तर इतना ही है कि मन आगे आगे चलता है और पूँछ पीछे पड़ी रहती है। इसी कारण पूँछ की निन्दा होती है और मन की प्रशंसा।