पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३२२

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पञ्चभूत। वस्तुओं में जैसी एक प्रकार की नवीनता है वैसी नवीनता सङ्गत- अविरुद्ध-पदार्थों में नहीं देखी जाती। प्रकृत असङ्गति या विरोध का सम्बन्ध इच्छा-शक्ति के साथ है। जड़-पदार्थों से उसका कोई भी सम्बन्ध नहीं । हम मार्ग में जा रहे । उस समय कहीं से दुर्गन्धि आई। हमने निश्चय किया कि यहाँ पाम ही कहीं कोई मड़ी गली वस्तु पड़ी है इसी कारण ऐसा हो रहा है। इसमें किसी प्रकार भी नियम का विरोध नहीं है। यह तो अवश्य होना ही था। जिन कारणों से जड़-प्रकृति के जा कार्य होते हैं व उसी प्रकार होंगे। यदि हम मार्ग में जाते जाते किसी मान्य और प्रभावशाली वृद्ध को नाचते दग्यते हैं तो उस समय यह बात विपरीत मालुम होती है। क्योंकि वैमा होना अनिवार्य नियम के अधीन नहीं है । मान- नीय वृद्धों का आचरण इस प्रकार का होगा, इमकी आशा हम लोग कभी नहीं करते। मनुष्य में इच्छा-शक्ति वर्तमान है, इस कारण वह यदि चाह ता नाच सकता है और न चाहे तो नहीं । परन्तु जड़-पदार्थ अपनी इच्छा के अनुसार कुछ भी नहीं कर सकत । अतएव उनकी चाह जैसी स्थिति हो परन्तु वे असङ्गत या कौतुकावह नहीं हैं। इसी तरह सहमा ठोकर लगना और दुर्गन्ध का आना आदि कार्य हास्य-जनक नहीं हैं। चाय का चम्मच यदि चाय के प्याले से बिछलकर स्याही में गिर पड़े तो इससे किसी को हँसी नहीं पाती । भार-आकर्षण-नियम का वश करना चम्मच की शक्ति के बाहर की बात है। पर यदि कोई अन्यमनस्क लेखक चाय का चम्मच स्याही से भर कर चाय पीने की मुद्रा बनावे तो यह