पञ्चभूत । ३१३ अधिक निष्ठुरता और साधारण निष्ठुरता दोनों में ही असङ्गति होती है। साधारण निष्ठुरता में भी अवस्था और इच्छा की अस- ङ्गति देखी जाती है। फालन्टाफ़ विण्डमर-वासिनी नटी के प्रेम से व्याकुल हो विश्वास-पूर्वक आगे बढ़ा परन्तु बेहद फजीहत उटाकर उसे पीछे लौट आना पड़ा। रामचन्द्र रावण को मार कर और अपने बनवाम की प्रतिज्ञा पूरी करके अपनी राजधानी में लौट प्राय । आत्र उनके दाम्पत्य-सुग्व भागने का बहुत ही अनुकूल समय है। परन्तु इसी समय न मालूम कहाँ से बिना मंघ के वज्रपात हुआ । गर्भवती सीता कोवन में निर्वासित करने के लिए रामचन्द्र को बाध्य होना पड़ा। इन दोनों स्थानों में प्राशा से फल की और इच्छा से अवस्था की असंगति प्रकाशित हुई है। अतएव यह बात अब माहम-पूर्वक कही जा सकती है कि अमङ्गति दा प्रकार की होती है । एक अस - ङ्गति हाम्य-जनक है और दूसरी दुःस्य-जनक । विरक्ति, विस्मय, क्रोध आदि उत्पन्न करनेवाली असङ्गति भी इसी दुःख-जनक अम् - ङ्गति की श्रेणी में हैं। अर्थात् जो असङ्गति हम लोगों के मन के बाहरी भाग में ग्राघात करती है उससे कौतुक उत्पन्न होता है और जो अमङ्गति मन के भीतर प्राधात करती है उमसे दुःख उत्पन्न होता है। शिकारी जब किसी श्वेत पदार्थ को दूर से देखता है तब उसे हंस समझ कर उसका अपना लक्ष्य बनाता है। उसने फौरन गोली चला दी और जब वह उसके पास गया ता दग्यता क्या है कि यह हम नहीं, यह तो श्वेत वस्त्र का टुकड़ा है। उम ममय उसका नैराश्य देख कर हम लोग हंसने लगते हैं । परन्तु जो मनुष्य किसी पदार्थ का
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