पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३२५

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विचित्र प्रबन्ध। पाना अपने जीवन का लक्ष्य समझता है तथा अनेक प्रयत्न और बड़ी सावधानी से उसको पाने के लिए अपने समस्त जीवन में उद्योग करता रहता है और कार्य सिद्ध होने पर जब उसे मालूम हुआ कि जिस पदार्थ के लिए हम इतने दिनों से परिश्रम करते थं वह एक तुच्छ पदार्थ है, तब उसके हृदय की कैसी दशा हाती है ! उस समय की उसकी निराशा से हमारा हृदय दुःखित हो जाता है। इसका सारांश यह है कि असङ्गति ही अवस्था भंद से विम्मय का रूप धारण करनी है, और वहीं विस्मय से आगे बढ़कर हास्य के रूप में परिणत होती है, तदनन्तर हास्य से भी गं जाकर सदन के रूप में परिणत हो जाती है। सुन्दरता के विषय में सन्तोष । दीप्ति और नदी दानां अभी नहीं आई है. कंवल हमी चार. जन उपस्थित हैं। वायु न कहा- उस दिन के कौतुक-हास्य के सम्बन्ध में एक बात हमारे हृदय में उत्पन्न हुई है। वह यह कि अधिकांश कौतुक के द्वारा हम लोगों के हृदय में एक अद्भुत चित्र बिच जाता है । और, उसी के कारण हम लोग हमत हैं। परन्तु जो उस अद्भुत चित्र का नहीं देख सकतं, जिनकी बुद्धि प्रबन्ट्रैक्ट विपयां के ही चक्कर काट रही है उनके हृदय पर कौतुक का कुछ भी अमर नहीं पड़ता। क्षिति ने कहा--पहलं तो तुम्हारी बात ही समझ में नहीं आई: और दूसरे यह अबन्दै क्ट शब्द अँगरंजी का है.