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विचित्र प्रबन्ध।

वंशी का पोलापन सुन्दर संगीत उत्पन्न करता है उसी प्रकार हम लोग संसार मेँ पन्दरह आना की व्यर्थता के द्वारा विधाता के गौरव की घोषणा करते हैँ। बुद्धदेव ने हमीं लोगों के लिए संसार का त्याग किया है। ईसा ने हमीं लोगों के लिए प्राण-त्याग किया है। ऋषियों ने हमीं लोगों के लिए तपस्या की है और साधुगण हमीं लोगों के लिए सजग रहते हैं।

जीवन व्यर्थ गया! जाने दो। क्योंकि उनको जाना ही चाहिए। उसका चला जाना ही एक प्रकार की सार्थकता है। नदी की धारा बह रही है, उसके समस्त जल को हम लोग स्नान-पान तथा अपने धान के खेत में ख़र्च नहीं कर डालते। नदी का बहुत जल केवल बहने के लिए ही रहता है। नदी के जल से और कोई काम न होकर केवल उसके प्रवाह की रक्षा होने की भी एक बड़ी भारी सार्थकता है। नदी के जल को, नहर काट कर, जो हम लोग तालाब मेँ लाते हैं उस जल से केवल स्नान करने का ही काम होता है। उससे पीने का काम नहीं निकलता। नदी से घड़े में भर कर जो जल हम लोग अपने घर में रखते हैं वह पीने के काम आता है, परन्तु उस पर प्रकाश और छाया की क्रिड़ा का उत्सव नहीं होता। उपकार को ही संपूर्ण सफलता समझना कृपणता है। उद्देश्य का ही परिणाम समझनेवाले अपनी दीनता का परिचय देते हैं।

हम साधारण लोग पन्दरह आना हैं। हम लोगों को अपने को छोटा समझने का कोई कारण नहीं है। हमीं लोग इस संसार की गति हैं। पृथिवी पर मनुष्य के हृदय में हम लोगों के जीवन का अधिकार है। हम किसी पर दख़ल नहीं रखते, और न हम